Sunday, December 10, 2017

सर्दिया

चटक सुनहरा रंग पहन कर मटक मटक कर आती है धुप
अलसुबह खिड़की से उतर कर
मोज़े आलसी बहुत हो चले है कि सुस्ताने से फुर्सत
नहीं मिलती आजकल
स्वेटर, दस्ताने मौका ढूंढते है कि कभी आकर पहन ले मुझे
बर्फ भी नहीं पड़ी इस बार, कि हवाए हड़ताल पर है!
बस दिसंबर का कैलेंडर अपनी रफ्तार पर है!
लगता है दूर कहीं इत्मीनान से रजाई ओढ़ कर सो रही है सर्दिया!

Friday, November 10, 2017

वीकेंड

बुलबुले शोर मचा रहे है बाल्टी में
खिड़किया खोल दी गई बंद पड़े कमरे की

रंगीन कपडे कतार से नहाने की तैयारी में है
आलसी आइना चुपचाप लेटा है

जूते चप्पल गहरी नींद में हैं
आज ताजी हवा की सांस ली है अलमारी ने

धुले कपड़ों की खुशबू मुआयना कर रही है
घर के कोने कोने का

आलू तैयार है पराठे की फॉर्म में आने के लिए
चाय ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया उबल कर 

औसत दिनों की बजाय सुकून से हूं मैं ,कि आज वीकेंड है 
घर पे रहने का दिन है, कि आज मेरा अपना दिन है !

Sunday, October 29, 2017

बाग़ी औरते




सुना है आजकल बढ़ती तादाद में शामिल है बाग़ी औरते

जो दिन भर चक्की की तरह पिसती है

रात को तकलीफ से सिसकती है

पर मुँह से उफ़ तक नहीं करती है बाग़ी औरते

सदियों पुरानी बेड़ियों को तोड़ना चाह रही है

खुद का वज़ूद तलाश करती

अपने रास्तो की तलाश में निकल पड़ी है बाग़ी औरते

मलूक से मेहनतकश में तब्दील हो रही है

आवाम के लिए मसला संजीदा बनकर उभर रही है

टूटी,बिखरती, फिर से संभलती बाग़ी औरते!

Saturday, October 14, 2017

दिवाली




आजकल बाजारों की रौनक गवाह है कि दिवाली आस पास है
सुना है सारे छोटे छोटे दिए मिल कर सामना करेंगे अंधेरे का

तुम भी तैयारी करने में मशगूल होगी ना माँ
पर इस बार जब तुम आओ,
तो रोशनी की चहल पहल से हटकर ज़रा खामोश घरो की तरफ भी जाना

यह औरत
जो सड़क पर बैठ कर मिट्टी के दिए बेचती है
मिट्टी के सांचे को आकार देती है तुम्हारा,
फिर दुनिया पूजन की रात मनोकामना पूर्ती के लिए पूजती है
इस बार इस मेहनत कश देवी को पहचान देती जाना

और वो ठेलेवाले बाबा
उम्र पक गईपर मेहनत करने की आदत नहीं गई
या फिर चंद मजबूरिया है घर पर बाट देख रही
दिवाली की तैयारी के लिए सोये नहीं कुछ रातो से
दो जोड़ी बूढ़ी आँखें राह तकती है तुम्हारी
इस बार ज़रा मिलती जाना

उधर कुछ लोग,
आए है दूर गांव से चंद पैसे कमाने
इन पर क़र्ज़ है अपनी गुणवती लक्ष्मी को ससुराल विदा करने का
तुम तो जगत माँ हो, खुद एक औरत हो
जानती हो यह समाज नियम कायदो का
इस बार पुकार सुनती जाना


महंगाई बहुत है,
हो सकता है बहुत घरों में दिए ना जले
हो सकता है बहुत लोग सो जाए ख़ाली पेट
हो सकता है बहुत मजबूरिया फीकी रंगोली मांडे
पर माँ इस दिवाली की प्रार्थना है कि इस बार सब की प्रार्थना सुनती जाना
सब के मन को रोशन करती जाना




Wednesday, September 27, 2017

प्रेम


उसे ठीक ठाक से शब्दों में कोई नहीं बांध पाया आज तक,लाखो हज़ारो में किताबो में लिखा है कुछ ज़रा ज़रा सा...

कयास तो बहुत लगाए तूलिका ने भी,पर बहुत कोशिशों के बाद भी नही उकेर पाई चटक रंगों का मेल...

 संगीत के सागर में भी उतरे तैराक बहुत,कुछ डूबे   ऐसा कि तर गए जहान से परे...

 सुना है जो प्रेम करता हैं ,सिर्फ वही जानता है!
 ये पहेली अबूझ ,लफ़्ज़ों से परे,रंगो का ख़ूबसूरत मेल
 कि जिसकी  इबादत करने से पाक हो जाती है   रूहे..





                                                                             


                 

Saturday, September 16, 2017

कदर



अकेला हुआ तो क्या
चलो फिर से उड़ता हूं मैं
दिल में ज़रा सा डर भी है
दिल ज़रा बेफिक्र भी है
तलाश है मुझे तेरी
और खुद की कदर भी है!












Friday, September 8, 2017

मौन



हर आने में निहित है लौट जाना
हर मौन के पीछे समाहित है शोर अनगिनत बातो का
हर खो देने में छिपा है हुनर पाने का
एक बार डूब जाने के मुमकिन है तर जाना
जिसे भीड़ में ढूंढ़ते है सब
वो तो अंदर हैं मेरे और मैं के बीच!

Monday, August 28, 2017

ज़िंदगी

अगर ज़िंदगी दे मौका मुझे तो माँ की गोद में सर रख कर लेटना चाहती हूं.
दूर गांव में खुले गगन तले तारो को ओढ़ कर सोना चाहती हूं.
छत पर बैठ कर चाँद से खूब सारी बातें करना चाहती हूं
शाम ढले पगडण्डी होते होते खेतो में घूमना चाहती हूं
वापिस अपने स्कूल जा कर सुबह की प्रार्थना गाना चाहती हूं
गुनगुनाती हैं माँ रसोई में...
मैं चुपचाप बैठ कर सुनना चाहती हूं
गुलमोहर के पेड़ लगे है दोनों तरफ उस सड़क पर
मैं वह जाकर साइकिल चलना चाहती हूं!

Monday, July 24, 2017

सुर्खियां

                बस कुछ ऐसे टी वी पर पिछले हफ़्ते की सुर्खियां चली
          इधर हरमन ने बल्ले के दम पर हर मन को जीता
          उधर गुडिया गुडो की दुनिया मे खेल कर
          शिमला की वादियों में फेंक दी गई

Tuesday, July 18, 2017

खूबसूरत जिंदगी






                अब खिड़कियों से झांकती है
                धूप हवा रोशनी को तरसती  है ..
                अंदर शोर बहुत हैं..बाहर लफ्ज़ खोजती हैं..
                शीशे की बिल्डिंग में बंद है खूबसूरत जिंदगी!

Tuesday, June 20, 2017

पहाड़



कुछ मील दूर एक तनहा सा शहर बसा हुआ है पहाड़ पर
आसपास के जंगल ने चादर में छुपा रखा है प्यार से
बस आजकल ज़रा उदास मालूम होता हैं वो खूबसूरत शहर
 हुजूम के हुजूम दौड़ते चले आते है, गर्मिया की छुट्टियां मनाने
वो खुले दिल से सबको गले लगता है,बच्चो के कहानियो में जा कर घर बन जाता है
कुछ लोग आते बियर की बोतल लेके, बीट्स पर ठुमके लगाने
वो अपनी लय-धुन साथ मिलाता है,के नाच के दिखाता है
कुछ लोग आते हैं ले कर कलम-कागज़ के बांध लेंगे लफ़्ज़ के गुच्छे
वो अपने शब्द बांट देता है,बाकायदा साथ बैठ कहानिया बुनवाता है
कुछ लोग आते है कैमरा लेकर, के कैद कर सके तिलिसम्म आसमान से उतरता
वो अपनी ख़ूबसूरती पे इठलाता है,बाकायदा पोज़ देते है
अभी भी ढलती शाम के साथ रोनके उतरती है रंग ब्रिरंगी लाइट्स पहन कर
के शहर में वक़्त रुक कर मस्ती की धुन में रम जाता है..
कुछ दिन चहल पहल में इतना मशगूल रहता है के करवट लेने की फुर्सत नहीं
पर जब सब चले जाते है तो शहर फिर से तनहा हो जाता है
अपनी हालत देखता है, खुद पर तरस खाता है
कभी जगलो में उड़ते पॉलीबैग उठाता है..
बियर की बोतल के बिखरे कांच के टुकड़ो से पैर बचाता है
अपने बिल्डिंग को झाड़ पोंछ कर साफ़ करता है
रंग चटक ओढ़ कर लेट जाता है
भीड़ मशगुल होती हैं इतनी की कोई सुनता नही
जब शहर गन्दा होता है,बिलख बिलख कर रोता है
अगर लोग बाग हो संजीदा शहर को लेकर
तो वो भी कुछ दिन बैग पैक कर के जाए
 ख़ुशी ख़ुशी छुट्टियां मनाए
के रिफ्रेश हो जाए एक-दो सेल्फी खींचे
थोड़ा रिलैक्स हो कर आए





Wednesday, June 7, 2017

ईरान

आज जंगल में एक सभा हुई 

पीने के पानी को लेकर सारे जानवरो में  सुलह हुई

के छोटे बड़े जानवरों की भूख प्यास को लेकर कानून बने 

सब ज़रूरत को समझे ताकि जंगल में सब के एक साथ रहने का दस्तूर बने

कहने  को जानवर थे , पर सब में आपसी समझ थी

सबने हालात को समझा , मिल बांट कर रहने को सहमति हुई

यह ठीक उस दिन की बात है, जब इंसानियत खून के आंसू बहा रही थी..

एक और आतंकी हमले की खबर ईरान से आ रही थी !

चांद का चक्कर !

ये जो तारे ठिठुऱते रहे ठण्ड में रात भर !   ये    सब चांद का चक्कर है !   ये जो आवारा बदल तलाशते रहे घर !   ये   सब...