Saturday, May 22, 2021

चांद का चक्कर !





ये जो तारे ठिठुऱते रहे ठण्ड में रात भर!

 ये  सब चांद का चक्कर है !

 ये जो आवारा बदल तलाशते रहे घर !

 ये  सब चांद का चक्कर है !

 यँहा एक जोड़ी आँखे एक पल भी ना सोई

 खूब रोई , कभी तरसी ,कभी फिर से बरसी

 ये  सब चांद का चक्कर है !

 ना उसने फ़रियाद सुनी, न कोई तस्ल्ली दी!

 बिख़रे बिख़रे टुकड़े समेटते निकल गई रात

 ये  सब चांद का चक्कर है !

Sunday, May 9, 2021

मेरी नज़्म ...


 











मेरी नज़्म ग़ुम गई है!

बहुत बार ढूंढ लिया! पुराने सफ़हे तक खोल लिए

सारी क़िताबों में भी ढूंढ लिया

कहीं किसी पेज पर लिख दी हो चलते फ़िरते

पर नज़्म है के दौड़ती है बेताशा दिलो दिमाग़ में

पर कहीं मिल नहीं रही है !

आज़मा ली सारी तरक़ीबें , अपना ली सारी तदबीरें

पर मेरी नज़्म ग़ुम गई है!

कभी हंसी ,कभी सुकून वाली नींद , कभी फुरसत जैसी

 मेरी नज़्म भागती-दौड़ती ज़िंदगी में ग़ुम गई हैं !


चांद का चक्कर !

ये जो तारे ठिठुऱते रहे ठण्ड में रात भर !   ये    सब चांद का चक्कर है !   ये जो आवारा बदल तलाशते रहे घर !   ये   सब...