Friday, November 10, 2017

वीकेंड

बुलबुले शोर मचा रहे है बाल्टी में
खिड़किया खोल दी गई बंद पड़े कमरे की

रंगीन कपडे कतार से नहाने की तैयारी में है
आलसी आइना चुपचाप लेटा है

जूते चप्पल गहरी नींद में हैं
आज ताजी हवा की सांस ली है अलमारी ने

धुले कपड़ों की खुशबू मुआयना कर रही है
घर के कोने कोने का

आलू तैयार है पराठे की फॉर्म में आने के लिए
चाय ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया उबल कर 

औसत दिनों की बजाय सुकून से हूं मैं ,कि आज वीकेंड है 
घर पे रहने का दिन है, कि आज मेरा अपना दिन है !

चांद का चक्कर !

ये जो तारे ठिठुऱते रहे ठण्ड में रात भर !   ये    सब चांद का चक्कर है !   ये जो आवारा बदल तलाशते रहे घर !   ये   सब...