Thursday, April 14, 2016
Friday, April 8, 2016
किताब
एक किताब देखी मैंने रास्ते से गुजरते वक़्त
उस शोर में किताब ने देखा मुझे
जैसे कोई बच्चा इंतज़ार करता हैं स्कूल से छुट्टी होने का
जैसे दादी माँ तकती हैं राह दादाजी की साइकिल की घंटी बजने की
फिर किताब आई मेरे साथ मेरे घर ..
इस उम्मीद के साथ जैसे के मैं सुन लुंगी उसकी सारी बाते..
जैसे वो उगल देगी राज दफ़न खुद के अंदर
जैसे होगी बाते पक्की सहेलियों की तरह
किताब को वक़्त देने की कशमकश में
नही चला लैपटॉप उस शाम मेरे घर
पर वक़्त ज़ाया कर दिया एक फ़ोन कॉल ने..
और फिर वक़्त ने अपनी रफ्तार पकड़ ली
लाइट ऑफ करते वक़्त किताब नें घूरा मुझे ..
शिकायत की नज़र से..
और मैंने किसी मुजरिम की तरह आँखे फेर ली..
उस दिन के बाद....
मैं और किताब मिलते हैंवक़्त बेवक़्त..
वो भी ज़रा ना उम्मीद रहती हैं मेरी तरह..
उसके राज भी दफ़न हैं चुप्पी में..
उसकी उदासी भी ढकी हैं खूबसूरत रंग वाले कवर से...
मै और किताब दोस्त बन गए हैं
जो बोलते नहीं ..जो हमसफ़र हैं
जो उदास हैं..पर उम्मीद पर कायम हैं
के शायद कोई आ कर पढ़ ले उनकी अनसुनी बाते..
Subscribe to:
Posts (Atom)
चांद का चक्कर !
ये जो तारे ठिठुऱते रहे ठण्ड में रात भर ! ये सब चांद का चक्कर है ! ये जो आवारा बदल तलाशते रहे घर ! ये सब...
-
एक पहाड़ से पनाह ली मैंने , क्योंकि घर बनाने का ख्वाब बचपन से पीछा ही नहीं छोड़ता मेरा ! बड़े इत्मीन...
-
My next B'day is around the corner and friends and family have their barrage of questions ready which a typical gal from North Indi...
-
Hii, This is my last E mail for before leaving city, I am leaving tomorrow morning, packing is almost done, I am tired like hell bu...