Thursday, April 16, 2020

सुबह की धुप!




मैं सोच रही हूं सुबह की धुप के मानिंद, चुपके से उतर जाऊ कमरे की खिड़की से..
चुपचाप निहार लूं,तुम्हे सोते हुए…तुम्हारी वो प्यारी सी नाक और आते जाते खर्राटे! 
बेतरतीब बिखरे बाल , कच्ची नींद को पक्का करती आँखे…
तुम्हारी मासूमियत को देख कर अक्सर शरारते आती है ज़ेहन में
जैसे पंखे की स्पीड कम कर दूं, या फिर फ़ोन पर मिस्ड कॉल कर डिस्टर्ब कर दूं...
खैरे ये ख्याल ही खूबसूरत है, मैं तो हमेशा से हूँ ही शराफत का नुमाइंदा!
तुम सुकून से ज़रा ख्वाब बुन लो…
मैं धुप हूं ,चलती हूं ...उम्मीद है जब नींद से जागो तो रोशन मिले तुम्हे घर हमारा! 

चांद का चक्कर !

ये जो तारे ठिठुऱते रहे ठण्ड में रात भर !   ये    सब चांद का चक्कर है !   ये जो आवारा बदल तलाशते रहे घर !   ये   सब...