Friday, November 16, 2018

.जायके







तुम्हारे ज़ेहन में  भी  दस्तक  देते होंगे ना
जायके  घर के लज़ीज खाने के ...

मसलन वो गाजर के अचार के डिब्बे को खोलते ही
सीधा दिमाग में उतर जाती माँ के हाथो से पिसी राई की खुश्बू…

 सर्दियों की आलसी सुबह में चकले पर चुस्ती से चलते हाथ,
तवे पर सिकते वो अचारी आलू प्याज़ के परांठे
औऱ वो किसी ग्लेशियर सा पिघलता मक्खन...

एक वो मीठी मीठी सी महक कढ़ाई में सिकते आटे की
जो कुछ देर बाद नपे-तुले घी शक़्कर मिला देने पर 
हलवे की शक्ल में तब्दील हो जाता था …

 वो गरम गरम आलू मटर की सब्ज़ी
अदरक-धनिया की महकती खुशबू 
कुकर की सिटी से रसोई की खिड़की से होकर 
फरार अक्सर पूरे घर में मुझे थी ढूंढती…

 आज ऑफिस में मैगी खाते वक्त खूब याद आये
घर के खाने के .जायके
कुछ खट्टे-मीठे ,कुछ करारे-तीखे...
माँ के हाथ के खाने के .जायके...


चांद का चक्कर !

ये जो तारे ठिठुऱते रहे ठण्ड में रात भर !   ये    सब चांद का चक्कर है !   ये जो आवारा बदल तलाशते रहे घर !   ये   सब...