Wednesday, September 27, 2017

प्रेम


उसे ठीक ठाक से शब्दों में कोई नहीं बांध पाया आज तक,लाखो हज़ारो में किताबो में लिखा है कुछ ज़रा ज़रा सा...

कयास तो बहुत लगाए तूलिका ने भी,पर बहुत कोशिशों के बाद भी नही उकेर पाई चटक रंगों का मेल...

 संगीत के सागर में भी उतरे तैराक बहुत,कुछ डूबे   ऐसा कि तर गए जहान से परे...

 सुना है जो प्रेम करता हैं ,सिर्फ वही जानता है!
 ये पहेली अबूझ ,लफ़्ज़ों से परे,रंगो का ख़ूबसूरत मेल
 कि जिसकी  इबादत करने से पाक हो जाती है   रूहे..





                                                                             


                 

Saturday, September 16, 2017

कदर



अकेला हुआ तो क्या
चलो फिर से उड़ता हूं मैं
दिल में ज़रा सा डर भी है
दिल ज़रा बेफिक्र भी है
तलाश है मुझे तेरी
और खुद की कदर भी है!












Friday, September 8, 2017

मौन



हर आने में निहित है लौट जाना
हर मौन के पीछे समाहित है शोर अनगिनत बातो का
हर खो देने में छिपा है हुनर पाने का
एक बार डूब जाने के मुमकिन है तर जाना
जिसे भीड़ में ढूंढ़ते है सब
वो तो अंदर हैं मेरे और मैं के बीच!

चांद का चक्कर !

ये जो तारे ठिठुऱते रहे ठण्ड में रात भर !   ये    सब चांद का चक्कर है !   ये जो आवारा बदल तलाशते रहे घर !   ये   सब...