उसे ठीक ठाक से शब्दों में कोई नहीं बांध पाया आज तक,लाखो हज़ारो में किताबो में लिखा है कुछ ज़रा ज़रा सा...
कयास तो बहुत लगाए तूलिका ने भी,पर बहुत कोशिशों के बाद भी नही उकेर पाई चटक रंगों का मेल...
संगीत के सागर में भी उतरे तैराक बहुत,कुछ डूबे ऐसा कि तर गए जहान से परे...
सुना है जो प्रेम करता हैं ,सिर्फ वही जानता है!
ये पहेली अबूझ ,लफ़्ज़ों से परे,रंगो का ख़ूबसूरत मेल
कि जिसकी इबादत करने से पाक हो जाती है रूहे..