Friday, September 8, 2017

मौन



हर आने में निहित है लौट जाना
हर मौन के पीछे समाहित है शोर अनगिनत बातो का
हर खो देने में छिपा है हुनर पाने का
एक बार डूब जाने के मुमकिन है तर जाना
जिसे भीड़ में ढूंढ़ते है सब
वो तो अंदर हैं मेरे और मैं के बीच!

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चांद का चक्कर !

ये जो तारे ठिठुऱते रहे ठण्ड में रात भर !   ये    सब चांद का चक्कर है !   ये जो आवारा बदल तलाशते रहे घर !   ये   सब...