Saturday, October 1, 2016

एक शाम




मैं एक शाम के लिए
तुम्हारे पास ठहर जाना चाहता हूं
नही देखना चाहता अखबार खून से सने हुए
न ही देखना चाहता हूं खबरे
झूठी सच्ची अफवाहे  उड़ते हुए


मैं एक शाम के लिए
तुम्हारे पास ठहर जाना चाहता हूं
सुनना चाहता हूं वो धुन
जो अक्सर गुनगुनाती हो तुम खाना बनाते वख्त 
बाते करना चाहता हूं उन सपनो की
जो सपने मैं बचपन में देखा करता था

बस एक शाम के लिए
मैं अपने सारे दुख सुख सांझे करना चाहता हूं
खाने का हर कौर स्वाद लेकर खाना चाहता हूं
मौसम के बदलते मिजाज को महसूस करना चाहता हूं
सुकून की चादर ओढ कर सो जाना चाहता हूं
थक हार जाता हूं रोज़मरा ज़िदंगी से  

बस एक शाम के लिए  
मैं खुद से मिलना चाहता हूं!        



   

चांद का चक्कर !

ये जो तारे ठिठुऱते रहे ठण्ड में रात भर !   ये    सब चांद का चक्कर है !   ये जो आवारा बदल तलाशते रहे घर !   ये   सब...