आजकल जिंदगी के अजब दौर पर हूं
दिन भर टूट कर सोता हूं.. नींद के लिए रात अधुरी रह जाती हैं
पैर में पंख बांध कर शामिल तो हूं, वख्त के साथ साथ , बस जो मेरे साथ हैं , उनके साथ रहने की गुजारिश अधूरी रह जाती हैं.. सुबह शाम आते जाते तो हैं सूरज चाँद, बस ढलते दिन के एक साथ शाम गुज़ारने की ख्वाईश अधूरी रह जाती हैं.
अनकही बातो का पुलिंदा हैं मेरे पास ,कोई मिलता नही अपना सा और मन की बात होटों तक आकर अधूरी रह जाती हैं.
यूँ तो पहनने को ख़ूबसूरत लिबास हैं मेरे पास.. माँ पास होती तो मुस्करा देती नाज़ से.. बस इतनी सी आस अधूरी रह जाती हैं।
बंजारों सी हैं ज़िंदगी, अंधरे के साथ घर में दाखिल होता हूं काश कर रहा होता कोई मेरा भी इनज़ार बस इतनी सी बात पर मायूसी आखो के रस्ते चेहरे पर आ जाती हैं।
दिन भर टूट कर सोता हूं.. नींद के लिए रात अधुरी रह जाती हैं
पैर में पंख बांध कर शामिल तो हूं, वख्त के साथ साथ , बस जो मेरे साथ हैं , उनके साथ रहने की गुजारिश अधूरी रह जाती हैं.. सुबह शाम आते जाते तो हैं सूरज चाँद, बस ढलते दिन के एक साथ शाम गुज़ारने की ख्वाईश अधूरी रह जाती हैं.
अनकही बातो का पुलिंदा हैं मेरे पास ,कोई मिलता नही अपना सा और मन की बात होटों तक आकर अधूरी रह जाती हैं.
यूँ तो पहनने को ख़ूबसूरत लिबास हैं मेरे पास.. माँ पास होती तो मुस्करा देती नाज़ से.. बस इतनी सी आस अधूरी रह जाती हैं।
बंजारों सी हैं ज़िंदगी, अंधरे के साथ घर में दाखिल होता हूं काश कर रहा होता कोई मेरा भी इनज़ार बस इतनी सी बात पर मायूसी आखो के रस्ते चेहरे पर आ जाती हैं।