Friday, February 13, 2015

अधुरी आस

आजकल जिंदगी के अजब दौर पर हूं
दिन भर टूट कर सोती हूं..नींद के लिए रात अधुरी रह जाती हैं 
पैर में पंख बांध कर शामिल तो हूं,वक्त के साथ साथ,बस जो मेरे साथ हैं ,
उनके साथ रहने की गुजारिश अधूरी रह जाती हैं...                                                                                      सुबह शाम आते जाते तो हैं सूरज चाँद,
बस ढलते दिन के एक साथ शाम गुज़ारने की ख्वाईश अधूरी रह जाती हैं.
अनकही बातो का पुलिंदा हैं मेरे पास ,कोई मिलता नही अपना सा 
और मन की बात  होंठो तक आकर अधूरी रह जाती हैं.
यूँ तो पहनने को ख़ूबसूरत लिबास हैं मेरे पास...
माँ  पास  होती तो मुस्करा देती नाज़ से.. बस इतनी सी आस अधूरी रह जाती हैं।
बंजारों सी हैं ज़िंदगी...अंधरे के साथ घर में दाखिल होती हूं  
काश कर रहा होता कोई मेरा भी इंतज़ार
बस इतनी सी बात पर मायूसी आँखों के रास्ते
चेहरे पर आ जाती हैं।




4 comments:

Unknown said...

Well said chanchal..:)

Chanchal Khurana said...

Thank you Dharm.

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Chanchal Khurana said...

wish you Happiness!

जंगली लड़की!

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