Saturday, May 22, 2021

चांद का चक्कर !





ये जो तारे ठिठुऱते रहे ठण्ड में रात भर!

 ये  सब चांद का चक्कर है !

 ये जो आवारा बदल तलाशते रहे घर !

 ये  सब चांद का चक्कर है !

 यँहा एक जोड़ी आँखे पल भी ना सोई

 खूब रोई , कभी तरसी ,कभी फिर से बरसी

 ये  सब चांद का चक्कर है !

 ना उसने फ़रियाद सुनी, न कोई तस्ल्ली दी!

 बिख़रे बिख़रे टुकड़े समेटते निकल गई रात

 ये  सब चांद का चक्कर है !

जंगली लड़की!

                                                       अरे ! कितनी जंगली लड़की हो तुम ! उगते सूरज को आँखों में   भरती   हो काजल के...