Wednesday, September 27, 2017

प्रेम


उसे ठीक ठाक से शब्दों में कोई नहीं बांध पाया आज तक,लाखो हज़ारो में किताबो में लिखा है कुछ ज़रा ज़रा सा...

कयास तो बहुत लगाए तूलिका ने भी,पर बहुत कोशिशों के बाद भी नही उकेर पाई चटक रंगों का मेल...

 संगीत के सागर में भी उतरे तैराक बहुत,कुछ डूबे   ऐसा कि तर गए जहान से परे...

 सुना है जो प्रेम करता हैं ,सिर्फ वही जानता है!
 ये पहेली अबूझ ,लफ़्ज़ों से परे,रंगो का ख़ूबसूरत मेल
 कि जिसकी  इबादत करने से पाक हो जाती है   रूहे..





                                                                             


                 

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चांद का चक्कर !

ये जो तारे ठिठुऱते रहे ठण्ड में रात भर !   ये    सब चांद का चक्कर है !   ये जो आवारा बदल तलाशते रहे घर !   ये   सब...