Tuesday, June 20, 2017

पहाड़



कुछ मील दूर एक तनहा सा शहर बसा हुआ है पहाड़ पर
आसपास के जंगल ने चादर में छुपा रखा है प्यार से
बस आजकल ज़रा उदास मालूम होता हैं वो खूबसूरत शहर
 हुजूम के हुजूम दौड़ते चले आते है, गर्मिया की छुट्टियां मनाने
वो खुले दिल से सबको गले लगता है,बच्चो के कहानियो में जा कर घर बन जाता है
कुछ लोग आते बियर की बोतल लेके, बीट्स पर ठुमके लगाने
वो अपनी लय-धुन साथ मिलाता है,के नाच के दिखाता है
कुछ लोग आते हैं ले कर कलम-कागज़ के बांध लेंगे लफ़्ज़ के गुच्छे
वो अपने शब्द बांट देता है,बाकायदा साथ बैठ कहानिया बुनवाता है
कुछ लोग आते है कैमरा लेकर, के कैद कर सके तिलिसम्म आसमान से उतरता
वो अपनी ख़ूबसूरती पे इठलाता है,बाकायदा पोज़ देते है
अभी भी ढलती शाम के साथ रोनके उतरती है रंग ब्रिरंगी लाइट्स पहन कर
के शहर में वक़्त रुक कर मस्ती की धुन में रम जाता है..
कुछ दिन चहल पहल में इतना मशगूल रहता है के करवट लेने की फुर्सत नहीं
पर जब सब चले जाते है तो शहर फिर से तनहा हो जाता है
अपनी हालत देखता है, खुद पर तरस खाता है
कभी जगलो में उड़ते पॉलीबैग उठाता है..
बियर की बोतल के बिखरे कांच के टुकड़ो से पैर बचाता है
अपने बिल्डिंग को झाड़ पोंछ कर साफ़ करता है
रंग चटक ओढ़ कर लेट जाता है
भीड़ मशगुल होती हैं इतनी की कोई सुनता नही
जब शहर गन्दा होता है,बिलख बिलख कर रोता है
अगर लोग बाग हो संजीदा शहर को लेकर
तो वो भी कुछ दिन बैग पैक कर के जाए
 ख़ुशी ख़ुशी छुट्टियां मनाए
के रिफ्रेश हो जाए एक-दो सेल्फी खींचे
थोड़ा रिलैक्स हो कर आए





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