यह जो परिंदे हवाओं में अठखेलिया करते है
अमूमन रूबरु नही होते हमेशा खूबसूरत उड़ानों से
रास्ते इन्तहा घुमावदार होते है
तेज रोशनी और गहरा अँधेरा भटका देते है
परिंदों को बस उडते जाना होता है
क्योंकि आसमान का कही नही ठिकाना होता है
भटकना ,संभालना,संभल के फिर से चलना
रुकना ,थमना, फिर सीधे उड़ता जाना
बदलते मौसमो के साथ हमेशा परिंदो को उड़ाने भरते देखा है मैंने
पर माँ अक्सर यकीन के साथ कहती हैं
जिस दिन परिन्दे संभल जायेंगे,समझ जायेंगे
घर लौट कर ज़रूर आयगे.
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