एक किताब देखी मैंने रास्ते से गुजरते वक़्त
उस शोर में किताब ने देखा मुझे
जैसे कोई बच्चा इंतज़ार करता हैं स्कूल से छुट्टी होने का
जैसे दादी माँ तकती हैं राह दादाजी की साइकिल की घंटी बजने की
फिर किताब आई मेरे साथ मेरे घर ..
इस उम्मीद के साथ जैसे के मैं सुन लुंगी उसकी सारी बाते..
जैसे वो उगल देगी राज दफ़न खुद के अंदर
जैसे होगी बाते पक्की सहेलियों की तरह
किताब को वक़्त देने की कशमकश में
नही चला लैपटॉप उस शाम मेरे घर
पर वक़्त ज़ाया कर दिया एक फ़ोन कॉल ने..
और फिर वक़्त ने अपनी रफ्तार पकड़ ली
लाइट ऑफ करते वक़्त किताब नें घूरा मुझे ..
शिकायत की नज़र से..
और मैंने किसी मुजरिम की तरह आँखे फेर ली..
उस दिन के बाद....
मैं और किताब मिलते हैंवक़्त बेवक़्त..
वो भी ज़रा ना उम्मीद रहती हैं मेरी तरह..
उसके राज भी दफ़न हैं चुप्पी में..
उसकी उदासी भी ढकी हैं खूबसूरत रंग वाले कवर से...
मै और किताब दोस्त बन गए हैं
जो बोलते नहीं ..जो हमसफ़र हैं
जो उदास हैं..पर उम्मीद पर कायम हैं
के शायद कोई आ कर पढ़ ले उनकी अनसुनी बाते..
10 comments:
Too Deep..Too Wast...So many meanings..
Thank you for the Understanding Chaman.
nice one
Thank you so much Sir! :)
very nice...Good thoughts.
Quite Thoughtful.. (surely they will be teaching every new generation of mankind no-matter how much technology evolves... :)
Thank you much Ayush. :)
Thank you :)
behad umda...
Thank you Nikita! :)
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