Sunday, June 21, 2020

रास्ता!

कोई इंसान एक दिन में  खुदखुशी नहीं करता नहीं झूलता फांसी के फंदे पर , नहीं कूदता ट्रेन के आगे न नींद की बे हिसाब गोलिया खाता है! बहुत लोग,बहुत से किस्से और हादसे जिम्मेदार होते है बहुत बार! बड़ी कशमकश लगती है ज़िंदगी को वापिस जीतने में या फिर हार जाने में मसलन धीरे धीरे मारने लगती है आँखों की चमक कभी कभी चुप्पी का शोर होता है या फिर अनगिनत ठहाके पर मरने लगती है बात करने वाले की आवाज़ की खनक! मुमकिन है बहुत बोलने वाला एकदम शांत हो जाए या फिर शांत रहने वाला बरबस बोलता रहे ! इस लड़ाई में सिर्फ सच बोलती है आँखे! हो सकता है बातचीत में नज़र चुराने लगे! मुमकिन है के नशे की दुनिया में आराम मिलने लगे दिमाग को! या फिर हो सकता है सुकून की तलाश में निकल पड़े राहगीर किसी पहाड़ पर या फिर अकेलापन रास आने लगे कभी कभी तो कभी-कभी लगने लगे शोर बेहतर! आसान नहीं है लड़ना , धीरे धीरे मर रही होती है बेबाक़ हंसी
हज़ार नियामते
होती है मगर जीतने लगती है एक कमी!
धीरे धीरे मर रहे होते है सपने
फिर ज़रूरी नहीं लगता कोई जाने या समझे!
शरीर का ख़त्म होना हादसा है! सुर्खिया बन जाता है! पर कमज़ोर पड़ती ज़िंदगी हर रोज़ किश्तों में ख़त्म होने से बचने के लिए चुपचाप तलाश करती कोई रास्ता है !

11 comments:

Unknown said...

Perfect 👍

MANPREET SINGH said...

कुछ और बेहतर हो सकती है

Unknown said...

Badhia

Unknown said...

Nice the impact of words deep to think and understand.

Ankur Budhiraja said...

Very deep and very meaningful. A person with a clean heart can write such a beautiful piece.

Ankur Vashisht said...

It's really touching...and again felt the pain of SSR on anyone who ...very well written

Chanchal Khurana said...

Thank you sir.

Chanchal Khurana said...

Thank you so much Ankur sir!

Chanchal Khurana said...

Thank you so much!

Chanchal Khurana said...

Thank you for the feedback Manpreet!

Chanchal Khurana said...

Thank you so much.

चांद का चक्कर !

ये जो तारे ठिठुऱते रहे ठण्ड में रात भर !   ये    सब चांद का चक्कर है !   ये जो आवारा बदल तलाशते रहे घर !   ये   सब...