वो दर्द रिसता
हैं रफ्ता रफ्ता,और मैं
तकलीफ से परेशान
हो जाती हूं
मैं
बहती है गहरी चुप्पी,भयानक
मायूसी
और बेचैन दर्द
से छटपटाती हूं मैं
वो बहुत गहरा
हैं,अंदर तक समाया हुआ
जिसे कोई देख
भी नहीं सकता,जो महसूस
कर पाती हूं
मैं
चलती है कश्मकश
हारने-जीतने की,अजीब सा
खेल हैं
जीत कर भी
हार जाती हूँ
मैं.
कैसे कहूँ,लफ्ज़
नहीं मेरे पास,वो सवाल
पर सवाल दागते
है
और पलके झुकाए
चला जाती हूँ
मैं
अजीब से बांध
गया धड़कते दिल
वाले पत्थर के
बुत से..जितना
पास आती हूँ
उतना खुद को
नुकसान पहुंचाती हूँ
मैं..