अरे! कितनी जंगली लड़की हो तुम!
उगते
सूरज को आँखों में भरती हो काजल के
मानिंद
उड़ते पंछियों से बात करती
हो, दरख्तों के गले लगती
हो तुम!
सुबह
का तारा नथ में
पहन,अंधेरो में मुट्ठी भर
धूप बिखेर देती हो
चाँद
को तकिया बना सितारो का
लिहाफ़ ओढ़ कर सोती हो
बारिशों
में नहाती हो, हवाओ सी
अपनी धुन में चलती
हो तुम
अरे!
कितनी जंगली लड़की हो तुम!
जब दुनिया कौवे सी कांव-कांव करती पीछा
करती है तुम्हारा
बाज़
के मानिंद अपनी उड़ान ज़रा और ऊंची भरती हो तुम
हालात
मौसम से बदलते हैं और धरती सी
अपनी
धुरी पर बने सब
महसुस करती आगे बढ़ती
हो तुम
अरे!
कितनी जंगली लड़की हो तुम!
कोई
कैसे बराबरी करे तुम्हारी,
रंग
कुदरत के पहनकर समंदर
की तरह सब समेटे अंदर
नदी
बन नये रास्ते खोजने
चल पड़ती हो तुम!
अरे!
कितनी जंगली लड़की हो तुम!
कभी
कभी लगता है घने खुबसूरत
जंगल तुम्हारी तरह होते है
रहस्मयी
या फिर लगता है कोई खुबसूरत घना
सा जंगल हो तुम!
आसान
हो सकता है तुम
तक पहुंचना,
बस ज़रा मुश्किल है
तुम में ठहरना
खैर ! इसमें कोई शक नहीं कि बेहद जंगली लड़की हो तुम!